श्रावण शुक्ल पंचमी को नागपंचमी पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस बार यह त्योहार 25 जुलाई, शनिवार के दिन मनाया जाएगा। सनातन परंपरा में पशुओं को भी पूजने की परंपरा है। नागों की पूजा का विशेष महत्व है। भगवान शिव तो उन्हें आभूषण की तरह गले में ही धारण करते हैं। नागों को एक मायने में इंसानों का मित्र माना जाता है। वे चूहों को खाकर उनकी संख्या सीमित रखते हैं। बड़ी संख्या में चूहे होने पर वे फसलों और अनाज को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
महत्व यह है
मान्यता है कि इस दिन नाग देवता की पूजा करने से उनकी कृपा मिलती और सर्प से किसी भी प्रकार की हानि का भय नहीं रहता। जिनकी कुंडली में काल सर्प दोष होता है, उन्हें इस दिन पूजन कराने से इस दोष से छुटकारा मिल जाता है। यह दोष तब लगता है, जब समस्त ग्रह राहु और केतु के बीच आ जाते हैं। ऐसे व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। इसके अलावा राहु-केतु की वजह से यदि जीवन में कोई कठिनाई आ रही है, तो भी नाग पंचमी के दिन सांपों की पूजा करने के लिए कहा जाता है।
इसलिए मनाया जाता है
नाग पंचमी का त्योहार इसलिए मनाया जाता है क्योंकि श्रावण महीने में जबरदस्त बारिश होती है। इसकी वजह से इस दौरान, सांप अक्सर अपने बिल से बाहर आते हैं क्योंकि बारिश की वजह से उनके बिल में पानी भर जाता है। वे खुद को बचाने के लिए इंसानों को डसकर उनकी जान ले सकते हैं। इसे रोकने के लिए नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन सांपों को दूध पिलाया जाता है। मान्यता है कि सांपों की याददाश्त तेज होती है और वे ऐसे लोगों के चेहरे को याद करते हैं ,जो उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। जब नाग इसका बदला लेते हैं, तो वे उस व्यक्ति के परिवार के लोगों को भी नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए, महिलाएं क्षमा मांगने के लिए और उन्हें अपने परिवार को किसी भी नुकसान से बचाने के लिए सांप की मूर्तियों से प्रार्थना करती हैं और जीवित सांपों को दूध पिलाती हैं।
नाग पंचमी का त्योहार तब शुरू हुआ जब सांपों के राजा तक्षक ने राजा जनमेजय कि पिता परीक्षित को डसकर उन्हें मार दिया था। उनकी मृत्यु का बदला लेने के लिए राजा जनमेजय ने पूरी नाग जाति को खत्म करने के लिए यज्ञ का आयोजन किया। ब्राह्मण अस्तिका ऋषि के हस्तक्षेप के कारण इस यज्ञ को जिस दिन रोका गया था, वह दिन नाग पंचमी का था और तब से नाग पूजा के लिए इस दिन को मनाया जाता है।
नाग पूजा का इतिहास
पुराणों में नाग पंचमी मनाने के पीछे कई मान्यताएं प्रचलित है। ऐसी मान्यता है कि श्रावण शुक्ल पंचमी तिथि को समस्त नाग वंश ब्रह्राजी के पास अपने को श्राप से मुक्ति पाने के लिए मिलने गए थे। तब ब्रह्राजी ने नागों को श्राप से मुक्ति किया था, तभी से नागों का पूजा करने की परंपरा चली आ रही है।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने सावन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को कालिया नाग का वध किया था। इस तरह उन्होंने गोकुलवासियों की जान बचाई थी। तब से नाग पूजा का पर्व चला आ रहा है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, समुद्र मंथन में जब रस्सी नहीं मिल रही थी, तो वासुकि नाग को रस्सी के रूप में प्रयोग किया गया था। देवताओं ने वासुकी नाग के कहने पर उनकी पूंछ पकड़ी थी और दावनों ने वासुकी नाग का मुंह। इस प्रकार समुद्र को मथने से पहले हलाहल विष निकला, जिसे भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण कर समस्त लोकों को रक्षा की। इसके बाद इस मंथन से अमृत निकला, जिसे देवताओं ने पीकर अमरत्व को प्राप्त किया। इस कारण से भी नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है।