नई दिल्ली। 30 अप्रैल को शाम के छह बजे उर्मिला कन्नौजिया के मोबाइल की घंटी बजती है। कॉल उनके पति रूप चंद्र कन्नौजिया के मोबाइल से आ रही थी, पापा का फोन आता देख उनकी बड़ी बेटी रीमा ने फोन उठा लिया। पर फोन पर आवाज पापा की नहीं थी, फोन करने वाले ने कहा, रीमा बोल रही हो... जैसे कि वह पहले से मुझे जानता हो। उसने अपना नाम इमरान बताया, कहा गुलाब को जानती हो, रीमा ने कहा नहीं, यह नम्बर तो मेरे पापा का है और उनका नाम रूपचंद कन्नौजिया है, उसने कहा कि उन्हीं को हमलोग यहां गुलाब के नाम से बुलाते हैं, अब वे इस दुनिया में नहीं हैं। रूपचंद्र का मोबाइल उसके बाद से ही बंद हो गया और आज तक बंद है।
उस दिन के बाद अब घर में जब भी कोई फोन बजता है...सब डर जाते हैं...दिल धड़कने लगता है कि पता नहीं किसका फोन होगा...अब क्या सुनने को मिलेगा। रूपचंद जिंदा हैं या मुर्दा परिवार के जेहन में यही सवाल कौंध रहा है। मुर्दा हैं तो उनकी डेडबाडी कहां है जिंदा हैं तो किस हाल में! 17 दिन से परिवार डरा-सहमा और सशंकित है। उनके पास तमाम सवाल है, पुलिस ने उनके पास क्यों फोन नहीं किया, हास्पिटल से भी कोई फोन क्यों नहीं आया, पापा का मोबाइल क्यों बंद है!
इन सभी सवालों से परेशान परिवार को कोई जवाब नहीं मिल रहा है। 17 दिन बीत चुके हैं। डरे-सहमे परिवार के चेहरे पर अजीब तनाव है। न खाना अच्छा लग रहा है और न ही नींद ढंग से आ रही है। फोन की घंटी ऐसा डरा रही है कि उर्मिला तो अब फोन भी नहीं उठा रहीं हैं। कोई फोन आता है तो दसवीं और 12वीं में पढ़ने वाली बेटियां ही बात करती हैं। गोरखनाथ थाना क्षेत्र के जटेपुर उत्तरी हाइडिल कालोनी निवासी रूपचंद्र करीब 15 साल पहले कुवैत कमाने गए हैं।
रूपचंद्र के तीन बच्चे हैं, बड़ा बेटा आलोक दूसरे की ऑटो चलाता है, दूसरे नम्बर की बेटी रीमा 12वीं की छात्रा है जबकि छोटी बेटी खुशी दसवीं में पढ़ती है। रीमा अपने पापा की दुलारी है वह उनसे रोजाना शाम को 5 से 6 बजे के बीच बात करती थी। अन्तिम बार रीमा ने ही पापा से बात की थी। रीमा कहती हैं कि 29 अप्रैल को शाम के पांच बजे पापा से बात हुई। बात करने का हर रोज का यह समय निर्धारित था। रीमा कहती हैं कि पापा घबराए जरूर थे पर उन्होंने ठीक से बात की थी, वहां के हालातों के बारे में बताया था, यही नहीं 28 अप्रैल को उन्होंने पैसा भी भेजा था। घर वापसी पर चर्चा हो रही थी।
पापा ने ही कहा था, फोन रखो बाद में बात होगी। रीमा बताती हैं कि 29 अप्रैल की शाम छह बजे न्यूज में मैंने सुना कि विदेश में रह रहे लोगों को घर ले आने के लिए मोदी सरकार जहाज भेजने वाली है। मैंने पापा को यह खुशखबरी सुनाने के लिए करीब सात बजे फोन किया। उनका फोन रिसीव नहीं हुआ।
फिर अगले दिन उनकी मौत की सूचना दी गई। सूचना देने वाले ने यहां तक बताया कि उन्हें हास्पिटल ले जाया गया था वहां उनकी मौत हो गई, उसने बताया कि पुलिस को भी सूचना दी गई है, पर हमलोग उसकी बात पर यकीन नहीं कर पा रहे हैं, उसने न तो डेडबाडी की फोटो दिखाई और न ही वहां की पुलिस ने ही फोन किया। कम्पनी की तरफ से भी साफ कुछ भी नहीं बताया गया। कभी हास्पिटल में भर्ती कराने की बात कही जाती तो कभी मौत की। परिवारीजनों ने इस बारे में डीएम से लेकर सीएम तक से गुहार लगाई है। पर वहां से भी कोई सूचना नहीं आई।