भारत में प्रायः कहा जाता है कि जो जितनी जल्दी ऊपर उठता है, वह उतनी ही गति से नीचे की ओर भी जाता है, लेकिन केजरीवाल के बारे में उक्त पंक्ति एकदम फिट नहीं बैठ रही। उनकी पार्टी को भले पिछली बार के मुकाबले पांच सीटें कम मिली हों लेकिन जीत बड़ी मिली है।
निश्चित रूप से यही कहा जा सकता है कि मुफ्त की राजनीति करने वाले राजनीतिक दल कहीं न कहीं देश में बेरोजगारी को बढ़ाने का ही कार्य करेंगे। वास्तव में होना यह चाहिए कि आम जनता के जीवन स्तर को ऊंचा उठाया जाए, उसे रोजगार प्रदान किया जाए, जिससे जनता को अपने व्यय खुद वहन करने की शक्ति मिले। मुफ्त सुविधाएं प्रदान करना एक प्रकार से समाज को निकम्मा बनाने की राह की निर्मित करने वाला ही कहा जाएगा। सरकार कोई भी हो उसे आम जनता के जीवन स्तर को उठाने का प्रयास करना चाहिए।
राजनीति में जय पराजय का कोई स्थायित्व नहीं होता। जो दल आज पराजय का सामना कर रहा है, कल उसकी विजय भी हो सकती है। आज केजरीवाल के नाम है तो कल किसी और के नाम भी हो सकता है। यह बात भी सही है कि पराजय एक सबक लेकर आती है। जीत कभी कभी अहंकारी बना देती है, लेकिन पराजय बहुत कुछ सिखा देती है। दिल्ली में भाजपा पराजय से कुछ सीखेगी या नहीं, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन कांग्रेस को अपनी पराजय का भान नहीं हो रहा। भाजपा को अब यह जान लेना चाहिए कि मोदी और अमित शाह के नाम के सहारे राज्यों के चुनाव नहीं जीते जा सकते, अब उसे राज्यों में नए अध्याय का प्रारंभ करना होगा।