सरेआम बलात्कार, मारे गए सैकड़ों, कश्मीरी पंडितों के शरणार्थी बनने की कहानी

1947 को देश आजादी ने साथ बंटवारा का दंश भी झेला। विभाजन के बाद कई महीनों तक दोनों नए देशों के बीच लोगों की आवाजाही हुई। भारत से कई मुसलमानों ने डर और अपने मुल्क की चाहत में पलायन किया तो पाकिस्तान से हिन्दुओं और सिखों ने अपना घर छोड़ दिया।





बशीर भद्र का एक शेर है लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में... 29 बरस पहले बस्तियां ही नहीं दिल भी जला था। अगर कोई आपको अपने घर से जबरदस्ती निकाल दे तो आपको गुस्सा आना लाजमी है। अगर कोई आपको अपमानित करे तो आपको गुस्सा आना जायज है। लेकिन क्या आपने कभी उन लोगों के बारे में सोचा है जिन्हें 29 साल पहले अपने ही घर से अपने ही राज्य से अपने कश्मीर से डरा धमका कर धक्के मार कर बाहर निकाल दिया गया था। 19 जनवरी 1990 की वो कहानी जिसका गुस्सा आज भी लाखों कश्मीरी पंडितों के भीतर उबल रहा है। लेकिन ये बड़े दुख की बात है कि देश पिछले 29 वर्षों से किसी जिंदा लाश की तरह न सिर्फ खामोश है बल्कि कश्मीरी पंडितों की बर्बादी का तमाशा देख रहा है। आज हम आपको कश्मीरी पंडितों के बारे में बताएंगे जिन्हें अपने ही देश में अपनी ही जमीन से बाहर खदेड़ दिया गया। इन लोगों की तकलीफ को जब आप सुनेंगे तो शायद जुल्म और अत्याचार जैसे शब्द भी आपको छोटे लगने लगेंगे। 

 


1947 को देश आजादी ने साथ बंटवारा का दंश भी झेला। विभाजन के बाद कई महीनों तक दोनों नए देशों के बीच लोगों की आवाजाही हुई। भारत से कई मुसलमानों ने डर और अपने मुल्क की चाहत में पलायन किया तो पाकिस्तान से हिन्दुओं और सिखों ने अपना घर छोड़ दिया। जो नहीं छोड़ना चाह रहे थे उन्हें हालातों ने मजबूर कर दिया। लूटपाट, हत्याएं, बलात्कार जैसी तमाम घटनाओं ने इस तारीख को लोगों के ज़ेहन में काली स्याही पोत दी। साल 1990 में आजादी के बाद दूसरे सबसे बड़ा पलायन से देश दो चार हुआ। 19 जनवरी 1990 को कश्मीर पंडितों को अपने ही देश में शरणार्थी बनाकर छोड़ दिया गया था। कश्मीर पंडित कश्मीर के इलाके के एक मात्र मूल हिन्दू निवासी हैं। वर्ष 1947 तक कश्मीर के अंदर कश्मीरी पंडितों की आबादी करीब 15 फीसदी तक थी। ये आबादी दंगों और अत्याचार की वजह से 1981 तक घटकर सिर्फ 5 प्रतिशत तक रह गई। वर्ष 1985 से कश्मीरी पंडितों पर जुल्म और अत्याचार बड़े पैमाने पर हुए। कश्मीरी पंडितों को कट्टरपंथियों और आतंकवादियों से लगातार धमकियां मिलने लगी। 19 जनवरी 1990 को वो दिन जब कट्टरपंथियों ने ये ऐलान कर दिया कि कश्मीरी पंडित काफिर हैं। वो या तो कश्मीर छोड़ कर चले जाए या फिर इस्लाम कबूल कर ले नहीं तो उन्हें जान से मार दिया जाएगा। कट्टर पंथियों ने कश्मीरी पंडितों की घरों की पहचान करने को कहा ताकि वो योजनाबद्ध तरीके से उन्हें निशाना बना सके। इसी दौरान बड़े पैमाने पर कश्मीर में हिन्दू अधिकारियों, बुद्धिजीवियों, कारोबारियों और दूसरे बड़े लोगों की हत्याएं शुरू हो गई। 

 

4 जनवरी 1990 को उर्दू अखबार आफताब में हिज्बुल मुजाहिदीन ने छपवाया कि सारे पंडित कश्मीर की घाटी छोड़ दें। अखबार अल-सफा ने इसी चीज को दोबारा छापा। चौराहों और मस्जिदों में लाउडस्पीकर लगाकर कहा जाने लगा कि पंडित यहां से चले जाएं, नहीं तो बुरा होगा। इसके बाद लोग लगातार हत्यायें औऱ रेप करने लगे। नारे लगने लगे कि पंडितो, यहां से भाग जाओ, पर अपनी औरतों को यहीं छोड़ जाओ – असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान (हमें पाकिस्तान चाहिए, पंडितों के बगैर, पर उनकी औरतों के साथ) एक आतंकवादी बिट्टा कराटे ने अकेले 20 लोगों को मारा था।इस बात को वो बड़े घमंड से सुनाया करता था। जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट इन सारी घटनाओं में सबसे आगे था। हालात ये हो गए कि फरवरी और मार्च 1990 के दो महीनों में 1 लाख 60 हजार कश्मीरी पंडितों को जिंदगी की आरजू औऱ बहन-बेटियों की आबरू बचाने के लिए घाटी से भागना पड़ा था। बड़े नाज से जिन घरों को उन्होंने बनाया और बसाया था वो अपनी जड़ों से उखड़ गए। जिसके बाद ये कश्मीरी पंडित वहां से भाग कर जम्मू, दिल्ली और देश के दूसरे हिस्सों में आ गए जहां उन्हें राहत कैंपों में रहना पड़ा। ये आंकड़ा बहुत ही चौंकाने वाला है कि कश्मीर से करीब 4 लाख कश्मीरी पंडितों को उनके घरों से भागने के लिए मजबूर कर दिया गया। यानी कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की 95 फीसदी आबादी को अत्याचारों के जरिए उस कश्मीर से भगा दिया गया जहां के वो मूल निवासी हैं।


कश्मीर में हुए बड़े नरसंहार



- डोडा नरसंहार- अगस्त 14, 1993 को बस रोककर 15 हिंदुओं की हत्या कर दी गई।

- संग्रामपुर नरसंहार- मार्च 21, 1997 घर में घुसकर 7 कश्मीरी पंडितों को किडनैप कर मार डाला गया।

- वंधामा नरसंहार- जनवरी 25, 1998 को हथियारबंद आतंकियों ने 4 कश्मीरी परिवार के 23 लोगों को गोलियों से भून कर मार डाला।

- प्रानकोट नरसंहार- अप्रैल 17, 1998 को उधमपुर जिले के प्रानकोट गांव में एक कश्मीरी हिन्दू परिवार के 27 मौत के घाट उतार दिया था, इसमें 11 बच्चे भी शामिल थे। इस नरसंहार के बाद डर से पौनी और रियासी के 1000 हिंदुओं ने पलायन किया था।

- 2000 में अनंतनाग के पहलगाम में 30 अमरनाथ यात्रियों की आतंकियों ने हत्या कर दी थी।

- 20 मार्च 2000 चित्ती सिंघपोरा नरसंहार होला मना रहे 36 सिखों की गुरुद्वारे के सामने आतंकियों ने गोली मार कर हत्या कर दी।

- 2001 में डोडा में 6 हिंदुओं की आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।

- 2001 जम्मू कश्मीर रेलवे स्टेशन नरसंहार, सेना के भेष में आतंकियों ने रेलवे स्टेशन पर गोलीबारी कर दी, इसमें 11 लोगों की मौत हो गई।

- 2002 में जम्मू के रघुनाथ मंदिर पर आतंकियों ने दो बार हमला किया, पहला 30 मार्च और दूसरा 24 नवंबर को। इन दोनों हमलों में 15 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई।

- 2002 क्वासिम नगर नरसंहार, 29 हिन्दू मजदूरों को मारडाला गया। इनमें 13 महिलाएं और एक बच्चा शामिल था।

- 2003 नदिमार्ग नरसंहार, पुलवामा जिले के नदिमार्ग गांव में आतंकियों ने 24 हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया था।

 

कश्मीर पंडित कश्मीर के इलाके के एक मात्र मूल हिन्दू निवासी हैं। वर्ष 1947 तक कश्मीर के अंदर कश्मीरी पंडितों की आबादी करीब 15 फीसदी तक थी। ये आबादी दंगों और अत्याचार की वजह से 1981 तक घटकर सिर्फ 5 प्रतिशत तक रह गई। वर्ष 1985 से कश्मीरी पंडितों पर जुल्म और अत्याचार बड़े पैमाने पर हुए। कश्मीरी पंडितों को कट्टरपंथियों और आतंकवादियों से लगातार धमकियां मिलने लगी। 19 जनवरी 1990 को वो दिन जब कट्टरपंथियों ने ये ऐलान कर दिया कि कश्मीरी पंडित काफिर हैं। वो या तो कश्मीर छोड़ कर चले जाए या फिर इस्लाम कबूल कर ले नहीं तो उन्हें जान से मार दिया जाएगा। कट्टर पंथियों ने कश्मीरी पंडितों की घरों की पहचान करने को कहा ताकि वो योजनाबद्ध तरीके से उन्हें निशाना बना सके। इसी दौरान बड़े पैमाने पर कश्मीर में हिन्दू अधिकारियों, बुद्धिजीवियों, कारोबारियों और दूसरे बड़े लोगों की हत्याएं शुरू हो गई। हालात ये हो गए कि फरवरी और मार्च 1990 के दो महीनों में 1 लाख 60 हजार कश्मीरी पंडितों को कश्मीरी पंडितों को भागना पड़ा था। ये कश्मीरी पंडित वहां से भाग कर जम्मू, दिल्ली और देश के दूसरे हिस्सों में आ गए जहां उन्हें राहत कैंपों में रहना पड़ा। ये आंकड़ा बहुत ही चौंकाने वाला है कि कश्मीर से करीब 4 लाख कश्मीरी पंडितों को उनके घरों से भागने के लिए मजबूर कर दिया गया। यानी कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की 95 फीसदी आबादी को अत्याचारों के जरिए उस कश्मीर से भगा दिया गया जहां के वो मूल निवासी हैं। 

 

आज हालात ये हैं कि जिस कशमीर में कभी लाखों की आबादी में कश्मीरी पंडित रहा करते थे। वहां उनका घर, संपत्ति, कारखाने और कारोबार था उस कश्मीर में आठ सौ परिवारों के सिर्फ 3 हजार 445 कश्मीरी पंडित ही बचे हैं। 11 जून 1999 को मानवाधिकार आयोग ने अपने एक फैसले में कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार को जौनेसाइड की श्रेणी में बताया था। 

 

कश्मीरी पंडितों को उनकी ही जमीन उनके ही घर से डरा धमका कर भगा देना उन्हें धर्म के आधार पर प्रताड़ित करना उनकी हत्या करना, उनकी संपत्ति को हड़प लेना, चुन-चुन कर कश्मीरी पंडितों के परिवारों पर हमले करना और आखिर में कश्मीरी पंडितों को मजबूरी में भाग कर देश के अन्य हिस्सों में पनाह लेने पर मजबूर कर देना उन्हें ये धमकी देना कि या तो वे इस्लाम अपना लें या फिर अपनी जान गंवाने के लिए तैयार हो जाए। क्या ये देश में सहनशीलता की निशानी है हमें बड़ी दुख के साथ आज ये कहना पड़ रहा है 

 

जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्‍य का दर्जा हटने के बाद वहां के हालात का जायजा लेने के लिए पहुंचे 15 देशों के राजनयिकों ने कश्मीरी पंडितों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की। इस दौरान कश्मीरी पंडितों ने 'कश्मीर को इस्लामिक आतंकवाद से आजादी' दिलाने संबंधी प्लैकार्ड दिखाए। 


'यह रैन बसेरा है, घर नहीं। हमारा सिर्फ कत्ल नहीं हुआ, हमारा वजूद मिटाया गया है। आप ही बताएं, जब किसी पेड़ को उखाड़कर दूसरी जगह लगाया जाए तो क्या होगा। इसलिए हम अपनी जड़ों (कश्मीर) में लौटना चाहते हैं। यह तभी होगा जब किसी के दिल में इस्लामिक आतंकवाद का खौफ न हो, रिवर्सल ऑफ जिनोसाइड हो। हमें रिलीफ नहीं चाहिए। सभी विस्थापित कश्मीरी पंडितों को वादी में किसी एक ही जगह बसाया जाए, ताकि हम सुरक्षा-शांति और विश्वास की सांस ले सकें।' यह बात जम्मू-कश्मीर के हालात का जायजा लेने आए 15 देशों के राजनयिकों के समक्ष एक विस्थापित कश्मीरी पंडित ने जरूर कही, लेकिन यह दर्द तीन दशकों से अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रह गए कश्मीरी पंडित समुदाय के प्रत्येक नागरिक का था। 



 

देश में आज जिस तरह का माहौल है, जहां धर्म को लेकर लड़ाई चर्म पर है। CAA को लेकर जित तरह पहले जामिया और फिर JNU में हिंसा हो रही है और उसका असर जिस तरह से हर कौम पर हो रहा है, तथाकथित लेखक, साहित्यकार, बुद्धिजीवि, इतिहासकार और तथाकथित सेक्युलर और क्रांतिकारी फिल्म स्टार देश में आज के माहौल को खराब बता रहे हैं। लेकिन कश्मीरी पंडितों की पीड़ा, अपने ही देश में उनके प्रवासी होने का दर्द इन सभी कथित बुद्धिजीवियों ने आज तक नहीं उठाई जिन पर ऐसे- ऐसे भयानक अत्याचार हुए हैं जिनके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता।